जलवायु परिवर्तन: विकास की दौड़ में मानवता के सामने सबसे बड़ी चुनौती Jalvayu Parivartan per nibandh UPSC
जलवायु परिवर्तन मानवता के विकास की दौड़ में सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि यह वैश्विक तापमान वृद्धि, प्राकृतिक आपदाओं और संसाधनों की कमी को बढ़ावा दे रहा है। यह समस्या औद्योगिकीकरण, वनों की कटाई और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से उत्पन्न हो रही है, जो आर्थिक विकास को बाधित कर रही है।
जलवायु परिवर्तन: विकास की दौड़ में मानवता के सामने सबसे बड़ी चुनौती
"जलवायु परिवर्तन कोई पर्यावरणीय बहस नहीं, बल्कि मानव सभ्यता के अस्तित्व से जुड़ा प्रश्न है।"
भूमिका (Introduction)
21वीं सदी को यदि किसी एक वैश्विक चुनौती के नाम से जाना जाएगा, तो वह निस्संदेह जलवायु परिवर्तन होगी। औद्योगिक क्रांति के बाद से मानव ने विकास की जिस तेज़ रफ्तार को अपनाया, उसने आर्थिक समृद्धि तो दी, परंतु इसके साथ ही प्रकृति के संतुलन को भी गहराई से प्रभावित किया। आज जलवायु परिवर्तन केवल हिमनदों के पिघलने या तापमान बढ़ने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कृषि, स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, गरीबी, असमानता और अंतरराष्ट्रीय राजनीति—सभी को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर रहा है।
UPSC जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में जलवायु परिवर्तन पर निबंध का उद्देश्य केवल समस्या का वर्णन नहीं, बल्कि इसके कारणों, प्रभावों और समाधान को संतुलित एवं विश्लेषणात्मक दृष्टि से प्रस्तुत करना होता है।
जलवायु परिवर्तन का अर्थ और स्वरूप
जलवायु परिवर्तन से आशय पृथ्वी की जलवायु प्रणाली में दीर्घकालिक परिवर्तन से है। इसमें औसत तापमान में वृद्धि, वर्षा के पैटर्न में बदलाव, समुद्र-स्तर में बढ़ोतरी और चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि शामिल है।
वैज्ञानिक रिपोर्टों के अनुसार औद्योगिक युग से अब तक वैश्विक तापमान लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। यदि यह वृद्धि 1.5 डिग्री से आगे बढ़ती है, तो इसके परिणाम विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए विनाशकारी हो सकते हैं।
जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारण
1. मानवीय गतिविधियाँ: मुख्य कारक
जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे अधिक उत्तरदायी कारण मानव द्वारा किए गए कार्य हैं। जीवाश्म ईंधनों—कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस—का अत्यधिक उपयोग ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को बढ़ाता है। ऊर्जा उत्पादन, परिवहन, उद्योग और शहरीकरण इस उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत हैं।
वनों की कटाई ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है। वन न केवल कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, बल्कि जलवायु संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
2. कृषि और भूमि उपयोग परिवर्तन
आधुनिक कृषि पद्धतियों में रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक प्रयोग और धान की खेती से निकलने वाली मीथेन जैसी गैसें भी जलवायु परिवर्तन को गति देती हैं।
3. प्राकृतिक कारण: सीमित भूमिका
ज्वालामुखीय विस्फोट, सौर विकिरण में परिवर्तन जैसे प्राकृतिक कारक भी जलवायु को प्रभावित करते हैं, किंतु वर्तमान जलवायु परिवर्तन में इनकी भूमिका अपेक्षाकृत नगण्य मानी जाती है।
जलवायु परिवर्तन के पर्यावरणीय प्रभाव
जलवायु परिवर्तन का सबसे पहला और स्पष्ट प्रभाव पर्यावरण पर दिखाई देता है। हिमालय और आर्कटिक क्षेत्र के हिमनद तेज़ी से पिघल रहे हैं, जिससे समुद्र स्तर बढ़ रहा है। तटीय क्षेत्रों में बाढ़ और भूमि क्षरण की समस्या गंभीर होती जा रही है।
जैव विविधता पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ा है। कई प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ रहा है।
आर्थिक विकास पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
1. कृषि और खाद्य सुरक्षा
भारत जैसे देशों में जहाँ बड़ी आबादी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है, जलवायु परिवर्तन एक गंभीर आर्थिक चुनौती बन चुका है। अनियमित मानसून, सूखा और बाढ़ फसल उत्पादन को प्रभावित करते हैं, जिससे किसानों की आय घटती है और खाद्य कीमतों में वृद्धि होती है।
2. उद्योग और अवसंरचना
चरम मौसमी घटनाओं के कारण सड़क, रेल, बिजली और औद्योगिक ढाँचे को भारी नुकसान होता है। इससे विकास परियोजनाओं की लागत बढ़ जाती है और आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ती है।
3. स्वास्थ्य और मानव पूंजी
बढ़ते तापमान और प्रदूषण के कारण हीट स्ट्रोक, संक्रामक रोग और कुपोषण जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं। इससे सरकारों का स्वास्थ्य व्यय बढ़ता है और श्रम उत्पादकता घटती है, जो सीधे आर्थिक विकास को प्रभावित करता है।
4. गरीबी और असमानता
जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव गरीब और कमजोर वर्गों पर पड़ता है। इस प्रकार यह सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को और गहरा करता है।
जलवायु परिवर्तन और भारत
भारत भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक कारणों से जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। लंबी तटरेखा, मानसून पर निर्भर अर्थव्यवस्था और उच्च जनसंख्या घनत्व भारत की संवेदनशीलता को बढ़ाते हैं।
हालाँकि भारत ने समाधान की दिशा में कई कदम उठाए हैं—राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना, अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन और LiFE (Lifestyle for Environment) मिशन इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
वैश्विक प्रयास और अंतरराष्ट्रीय सहयोग
जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है, जिसका समाधान भी वैश्विक सहयोग से ही संभव है। पेरिस समझौता, जलवायु वित्त और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। विकसित देशों की ऐतिहासिक जिम्मेदारी को स्वीकार करते हुए विकासशील देशों की आवश्यकताओं का सम्मान करना आवश्यक है।
सतत विकास: आगे का मार्ग
जलवायु परिवर्तन और आर्थिक विकास को विरोधी नहीं, बल्कि पूरक के रूप में देखने की आवश्यकता है। नवीकरणीय ऊर्जा, हरित प्रौद्योगिकी, जलवायु-स्मार्ट कृषि और हरित नौकरियाँ सतत विकास का आधार बन सकती हैं।
व्यक्तिगत स्तर पर जीवनशैली में बदलाव और नीतिगत स्तर पर मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति इस संघर्ष को सफल बना सकती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
अंततः कहा जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन केवल पर्यावरणीय संकट नहीं, बल्कि विकास के वर्तमान मॉडल पर प्रश्नचिह्न है। यदि मानवता ने समय रहते संतुलित और सतत विकास का मार्ग नहीं अपनाया, तो आर्थिक प्रगति अर्थहीन हो जाएगी।
धरती को बचाना विकास के विरुद्ध नहीं, बल्कि विकास को बचाने की शर्त है।
यही दृष्टिकोण UPSC निबंध में एक परिपक्व, संतुलित और दूरदर्शी उत्तर की पहचान बनता है।
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