UPSC की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों के लिए यह विषय GS Paper-2 (Governance), GS Paper-3 (Economy) और निबंध—तीनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह ब्लॉग पोस्ट आपको तथ्य, विश्लेषण, नीति और भविष्य की दिशा—तीनों को जोड़कर एक समग्र दृष्टि देगा।
वैश्विक आर्थिक संकट और भारत पर प्रभाव, नीति और भविष्य
प्रस्तावना (Introduction)
वैश्विक आर्थिक संकट (Global Economic Crisis) कोई नई घटना नहीं है। 1929 की महामंदी से लेकर 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट और कोविड-19 के बाद की आर्थिक उथल-पुथल तक, दुनिया समय-समय पर आर्थिक झटकों से गुजरती रही है। लेकिन सवाल यह है कि इन संकटों का प्रभाव विकासशील देशों, विशेष रूप से भारत, पर कैसे पड़ता है?
UPSC की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों के लिए यह विषय GS Paper-2 (Governance), GS Paper-3 (Economy) और निबंध—तीनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह ब्लॉग पोस्ट आपको तथ्य, विश्लेषण, नीति और भविष्य की दिशा—तीनों को जोड़कर एक समग्र दृष्टि देगा।
1. वैश्विक आर्थिक संकट क्या है? (What is Global Economic Crisis?)
वैश्विक आर्थिक संकट वह स्थिति है जब दुनिया के कई देशों की अर्थव्यवस्थाएँ एक साथ मंदी, वित्तीय अस्थिरता और बेरोज़गारी का सामना करती हैं।
प्रमुख विशेषताएँ:
- वैश्विक GDP में गिरावट
- अंतरराष्ट्रीय व्यापार में कमी
- पूंजी प्रवाह (Capital Flow) में अस्थिरता
- बेरोज़गारी और गरीबी में वृद्धि
UPSC पॉइंट: आर्थिक संकट केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक संकट भी बन जाता है।
2. प्रमुख वैश्विक आर्थिक संकट: एक ऐतिहासिक दृष्टि
(क) 1929 की महामंदी
- अमेरिका से शुरू होकर पूरी दुनिया में फैली
- औद्योगिक उत्पादन में भारी गिरावट
(ख) 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट
- सब-प्राइम लोन संकट
- वैश्विक बैंकिंग सिस्टम पर असर
(ग) कोविड-19 के बाद की वैश्विक मंदी
- सप्लाई चेन का टूटना
- स्वास्थ्य + आर्थिक संकट का संयोजन
3. विकासशील देशों पर वैश्विक संकट का प्रभाव
3.1 आर्थिक प्रभाव
- निर्यात में गिरावट
- विदेशी निवेश (FDI/FPI) में कमी
- मुद्रा अवमूल्यन
3.2 सामाजिक प्रभाव
- बेरोज़गारी में वृद्धि
- असमानता बढ़ना
- शिक्षा और स्वास्थ्य पर दबाव
3.3 राजनीतिक प्रभाव
- लोकलुभावन नीतियों का उदय
- सामाजिक असंतोष
4. भारत पर वैश्विक आर्थिक संकट का प्रभाव
भारत, एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था (Emerging Economy) होने के कारण, वैश्विक संकटों से पूरी तरह अछूता नहीं रहता।
(क) GDP वृद्धि दर पर असर
- 2008 में भारत की विकास दर 9% से गिरकर ~6% हो गई
(ख) रोजगार और MSME सेक्टर
- MSME सबसे अधिक प्रभावित
- अनौपचारिक क्षेत्र पर सीधा असर
(ग) विदेशी व्यापार और चालू खाता घाटा
- निर्यात घटता है
- CAD बढ़ने का खतरा
5. भारत की नीतिगत प्रतिक्रिया (Policy Response of India)
5.1 मौद्रिक नीति (Monetary Policy)
- RBI द्वारा रेपो रेट में कटौती
- तरलता (Liquidity) बढ़ाना
5.2 राजकोषीय नीति (Fiscal Policy)
- आर्थिक पैकेज
- बुनियादी ढाँचे में निवेश
5.3 संरचनात्मक सुधार
- GST
- दिवालियापन और शोधन अक्षमता संहिता (IBC)
- आत्मनिर्भर भारत अभियान
6. अन्य विकासशील देशों की रणनीतियाँ: तुलना
| देश | प्रमुख नीति | परिणाम |
|---|---|---|
| भारत | मांग प्रोत्साहन + सुधार | मध्यम सफलता |
| ब्राज़ील | सामाजिक खर्च | वित्तीय दबाव |
| वियतनाम | निर्यात आधारित मॉडल | तेज़ रिकवरी |
UPSC एंगल: तुलनात्मक अध्ययन उत्तर को समृद्ध बनाता है।
7. वैश्विक संस्थाओं की भूमिका
7.1 IMF
- बेलआउट पैकेज
- संरचनात्मक सुधार की शर्तें
7.2 विश्व बैंक
- विकास परियोजनाओं में सहायता
7.3 G20 और भारत
- भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका
- Global South की आवाज़
8. बुक-स्टाइल इन्फोग्राफिक (Textual Infographic)
[वैश्विक आर्थिक संकट]
↓
[पूंजी प्रवाह में गिरावट]
↓
[विकासशील देश]
↓ ↓
[भारत] [अन्य देश]
↓ ↓
[नीतिगत प्रतिक्रिया]
↓
[भविष्य की अर्थव्यवस्था]
9. भविष्य की चुनौतियाँ (Future Challenges)
- जलवायु परिवर्तन और ग्रीन इकोनॉमी
- डिजिटल असमानता
- वैश्वीकरण बनाम संरक्षणवाद
10. भारत के लिए भविष्य की रणनीति (Way Forward)
10.1 समावेशी विकास
- शिक्षा और कौशल विकास
10.2 आत्मनिर्भर लेकिन वैश्विक
- ग्लोबल वैल्यू चेन में भागीदारी
10.3 संस्थागत सुधार
- न्यायिक और प्रशासनिक दक्षता
निष्कर्ष (Conclusion – High CTR Hook)
वैश्विक आर्थिक संकट एक चुनौती है, लेकिन भारत जैसे विकासशील देशों के लिए यह अवसर में बदलने की क्षमता भी रखता है। सही नीति, मजबूत संस्थान और दूरदर्शी नेतृत्व के साथ भारत न केवल संकट से उबर सकता है, बल्कि वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में एक निर्णायक भूमिका भी निभा सकता है।
UPSC के शब्दों में: संकट वही, अवसर वही—दृष्टि बदलने की ज़रूरत है।
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