arthashastra ki prakriti evam kshetra ki vyakhya kijiye, अर्थशास्त्र की प्रकृति एवं क्षेत्र की व्याख्या कीजिए
अर्थशास्त्र दुर्लभ संसाधनों के स्वामित्व, उपयोग और विनिमय का वैज्ञानिक अध्ययन है। अर्थशास्त्र को एक सामाजिक विज्ञान के रूप में माना जाता है क्योंकि यह उन सिद्धांतों के निर्माण के लिए वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करता है जो व्यक्ति, समूह संगठनों के व्यवहार को समझने में मदद कर सकते हैं।
अर्थशास्त्र की प्रकृति एवं क्षेत्र | Nature and Scope of Economics in Hindi
परिचय
अर्थशास्त्र (Economics) मानव जीवन का अभिन्न अंग है। यह केवल धन, वस्तुओं या सेवाओं तक सीमित नहीं है बल्कि यह मानव की आवश्यकताओं, इच्छाओं और संसाधनों के उचित उपयोग से जुड़ा हुआ विज्ञान है। अर्थशास्त्र की प्रकृति एवं क्षेत्र का अध्ययन हमें यह समझने में मदद करता है कि अर्थशास्त्र किस प्रकार एक विज्ञान है, इसका उद्देश्य क्या है और यह समाज एवं राष्ट्र के विकास में कैसी भूमिका निभाता है।
आज के प्रतिस्पर्धी और संसाधन-संकटग्रस्त युग में अर्थशास्त्र का महत्व और भी बढ़ गया है। यही कारण है कि “अर्थशास्त्र की प्रकृति एवं क्षेत्र” का विषय न केवल विद्यार्थियों बल्कि शोधकर्ताओं, व्यवसायियों और नीति-निर्माताओं के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
अर्थशास्त्र की परिभाषाएँ
अर्थशास्त्र को अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग रूप में परिभाषित किया है।
1. एडम स्मिथ (Adam Smith) – धन का विज्ञान
एडम स्मिथ (1776) ने अर्थशास्त्र को “Wealth of Nations” नामक पुस्तक में परिभाषित किया और इसे धन का विज्ञान माना।
"Economics is the study of the nature and causes of the wealth of nations."
2. मार्शल (Marshall) – कल्याण का विज्ञान
ए. सी. मार्शल ने अर्थशास्त्र को मानव कल्याण से जोड़ा और इसे मानव जीवन की भलाई से संबंधित विज्ञान बताया।
3. रॉबिन्स (Robbins) – संसाधनों का विज्ञान
लायनल रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र की परिभाषा देते हुए कहा:
"Economics is the science which studies human behaviour as a relationship between ends and scarce means which have alternative uses."
अर्थात, अर्थशास्त्र सीमित साधनों का अधिकतम उपयोग कर असीमित इच्छाओं की पूर्ति से संबंधित है।
4. सैमुएलसन (Samuelson) – गतिशील विज्ञान
सैमुएलसन के अनुसार अर्थशास्त्र एक गतिशील विज्ञान है जो संसाधनों के आवंटन, उत्पादन, वितरण और उपभोग की प्रक्रिया को समझाता है।
अर्थशास्त्र की प्रकृति (Nature of Economics)
अर्थशास्त्र की प्रकृति को लेकर विद्वानों में लंबे समय से बहस होती रही है। इसे समझने के लिए इसके प्रमुख पहलुओं को देखा जा सकता है।
1. क्या अर्थशास्त्र विज्ञान है?
- सकारात्मक दृष्टिकोण – रॉबिन्स और अन्य विद्वानों के अनुसार अर्थशास्त्र तथ्यों और तर्कों पर आधारित है, इसलिए यह विज्ञान है।
- सटीकता का अभाव – कुछ विद्वान मानते हैं कि अर्थशास्त्र प्राकृतिक विज्ञान (Physics, Chemistry) की तरह सटीक भविष्यवाणियाँ नहीं कर पाता, इसलिए इसे “सामाजिक विज्ञान” कहा जाता है।
2. क्या अर्थशास्त्र कला है?
- अर्थशास्त्र केवल सिद्धांत तक सीमित नहीं है बल्कि यह उन्हें व्यवहार में लागू करने का भी तरीका बताता है।
- जैसे – बजट निर्माण, कर नीति, रोजगार नीति, मूल्य नियंत्रण आदि।
- इस प्रकार अर्थशास्त्र को विज्ञान और कला दोनों माना जा सकता है।
3. क्या अर्थशास्त्र सकारात्मक (Positive) या मानक (Normative) विज्ञान है?
- सकारात्मक अर्थशास्त्र – जो “क्या है” (What is) पर आधारित है।
जैसे – भारत में बेरोजगारी की दर 7% है। - मानक अर्थशास्त्र – जो “क्या होना चाहिए” (What ought to be) पर आधारित है।
जैसे – भारत में बेरोजगारी की दर को 4% तक कम करना चाहिए। - आधुनिक विद्वानों के अनुसार अर्थशास्त्र दोनों का मिश्रण है।
4. सामाजिक विज्ञान के रूप में
अर्थशास्त्र मानव व्यवहार, सामाजिक संस्थाओं और संसाधनों के बीच संबंधों का अध्ययन करता है। इसलिए इसे एक सामाजिक विज्ञान (Social Science) कहा जाता है।
अर्थशास्त्र का क्षेत्र (Scope of Economics)
अर्थशास्त्र का क्षेत्र बहुत व्यापक है। इसे मुख्यतः दो भागों में बाँटा गया है:
1. सूक्ष्म अर्थशास्त्र (Micro Economics)
- व्यक्तिगत उपभोक्ता, उत्पादक और बाजार की इकाइयों का अध्ययन।
- प्रमुख विषय: मांग, आपूर्ति, मूल्य निर्धारण, उपभोक्ता संतुलन, उत्पादक संतुलन।
2. व्यापक अर्थशास्त्र (Macro Economics)
- संपूर्ण अर्थव्यवस्था का अध्ययन।
- प्रमुख विषय: राष्ट्रीय आय, रोजगार, महँगाई, आर्थिक विकास, अंतरराष्ट्रीय व्यापार।
अर्थशास्त्र के अध्ययन के प्रमुख क्षेत्र
1. उत्पादन (Production)
कैसे सीमित संसाधनों का उपयोग करके वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किया जाए।
2. वितरण (Distribution)
उत्पादन से प्राप्त आय का विभिन्न कारकों (भूमि, श्रम, पूँजी, उद्यमी) के बीच वितरण।
3. उपभोग (Consumption)
व्यक्ति किस प्रकार वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग कर संतुष्टि प्राप्त करता है।
4. विनिमय (Exchange)
बाजार में वस्तुओं और सेवाओं के लेन-देन और मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया।
5. सार्वजनिक वित्त (Public Finance)
सरकार के राजस्व, व्यय और बजट से संबंधित विषय।
6. अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्र (International Economics)
अंतरराष्ट्रीय व्यापार, मुद्रा विनिमय और वैश्विक आर्थिक संबंध।
7. विकास अर्थशास्त्र (Development Economics)
गरीबी, बेरोजगारी, असमानता और आर्थिक विकास से जुड़े मुद्दे।
आधुनिक युग में अर्थशास्त्र की भूमिका
- राष्ट्रीय आय और विकास – GDP और GNP की गणना।
- रोजगार और बेरोजगारी – रोजगार अवसरों का सृजन।
- मूल्य स्थिरता – महँगाई और मंदी को नियंत्रित करना।
- गरीबी उन्मूलन – समाज में समानता लाना।
- वैश्वीकरण – अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश का विकास।
- पर्यावरणीय अर्थशास्त्र – सतत विकास और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण।
अर्थशास्त्र की सीमाएँ
- प्राकृतिक विज्ञान की तरह पूर्ण सटीकता का अभाव।
- मानवीय इच्छाओं की अनिश्चितता।
- आर्थिक नीतियों का समान प्रभाव सभी पर नहीं पड़ता।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रश्न 1: अर्थशास्त्र की प्रकृति क्या है?
उत्तर: अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है जो मानव की असीमित इच्छाओं और सीमित संसाधनों के बीच संतुलन बनाने का अध्ययन करता है।
प्रश्न 2: अर्थशास्त्र का क्षेत्र किन-किन भागों में विभाजित है?
उत्तर: अर्थशास्त्र का क्षेत्र मुख्यतः दो भागों में – सूक्ष्म अर्थशास्त्र और व्यापक अर्थशास्त्र।
प्रश्न 3: क्या अर्थशास्त्र विज्ञान है या कला?
उत्तर: अर्थशास्त्र को विज्ञान और कला दोनों माना जाता है क्योंकि यह सिद्धांत भी बताता है और उनके व्यावहारिक प्रयोग का मार्गदर्शन भी करता है।
प्रश्न 4: अर्थशास्त्र का आधुनिक महत्व क्या है?
उत्तर: अर्थशास्त्र आज रोजगार, गरीबी, असमानता, महँगाई, वैश्विक व्यापार और पर्यावरणीय समस्याओं को हल करने में सहायक है।
निष्कर्ष
अर्थशास्त्र केवल धन का विज्ञान नहीं है बल्कि यह मानव कल्याण और संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग का विज्ञान है। इसकी प्रकृति विज्ञान एवं कला दोनों की है और इसका क्षेत्र सूक्ष्म से लेकर व्यापक स्तर तक फैला हुआ है। आज के युग में अर्थशास्त्र प्रत्येक राष्ट्र की नीतियों, योजनाओं और विकास रणनीतियों की आधारशिला है।
इस प्रकार, अर्थशास्त्र की प्रकृति एवं क्षेत्र का गहन अध्ययन न केवल विद्यार्थियों के लिए बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।
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