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Bhu tapiya urja,भूतापीय ऊर्जा की परिभाषा, लाभ और नुकसान क्या है

भूतापीय ऊर्जा पृथ्वी से निकालने वाली ऊर्जा है इस ऊर्जा का उपयोग नहाने और बिजली पैदा करने के लिए किया जाता है।

 भूतापीय ऊर्जा (Geothermal Energy) पर लेख इसमें परिभाषा, इतिहास, कार्यप्रणाली, प्रकार, उपयोग, लाभ, चुनौतियाँ, भारत एवं विश्व में इसकी स्थिति, भविष्य की संभावनाएँ आदि सब कुछ विस्तार से शामिल होगा।


भूतापीय ऊर्जा : स्रोत, महत्व, संभावनाएँ और चुनौतियाँ

प्रस्तावना

आज के आधुनिक युग में ऊर्जा की आवश्यकता निरंतर बढ़ रही है। औद्योगिक विकास, शहरीकरण, परिवहन और सूचना प्रौद्योगिकी ने ऊर्जा की खपत को अभूतपूर्व स्तर पर पहुँचा दिया है। ऐसे में यह प्रश्न और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि भविष्य के लिए सुरक्षित, सस्ती, अक्षय और पर्यावरण–अनुकूल ऊर्जा कहाँ से प्राप्त की जाए। कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस जैसे पारंपरिक स्रोत सीमित हैं और इनके अधिकाधिक उपयोग से पर्यावरण प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।

इन्हीं परिस्थितियों में भूतापीय ऊर्जा यानी पृथ्वी के भीतर संचित ऊष्मा का उपयोग मानव समाज के लिए आशा की किरण बनकर उभरता है। यह एक नवीकरणीय, टिकाऊ और लगभग प्रदूषण–मुक्त ऊर्जा का स्रोत है।


भूतापीय ऊर्जा की परिभाषा

भूतापीय ऊर्जा (Geothermal Energy) वह ऊर्जा है जो पृथ्वी के भीतर उपस्थित गर्मी या ऊष्मा से प्राप्त होती है। पृथ्वी के गहरे हिस्सों में तापमान अत्यधिक अधिक होता है। यह ऊष्मा मुख्यतः तीन कारणों से उत्पन्न होती है—

  1. पृथ्वी के निर्माण के समय बची हुई आद्य ऊष्मा।
  2. चट्टानों में रेडियोधर्मी तत्वों (यूरेनियम, थोरियम, पोटैशियम आदि) के विखंडन से उत्पन्न ऊष्मा।
  3. ज्वालामुखीय गतिविधियाँ और भूगर्भीय प्रक्रियाएँ।

जब यह ऊष्मा सतह के निकट भूजल या चट्टानों तक पहुँचती है तो भाप, गर्म पानी अथवा भूतापीय जलाशय का रूप ले लेती है। इन्हीं का उपयोग विद्युत उत्पादन, ताप आपूर्ति, औद्योगिक कार्यों और घरेलू आवश्यकताओं के लिए किया जाता है।


ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • प्राचीन रोम, चीन और भारत में गर्म झरनों का उपयोग स्नान, औषधीय उपचार और घरेलू कार्यों के लिए किया जाता था।
  • आइसलैंड में 13वीं शताब्दी से ही गर्म झरनों का उपयोग खाना पकाने और स्नान के लिए होता आया है।
  • 1904 में इटली के लार्डेरेल्लो (Larderello) क्षेत्र में पहली बार भूतापीय ऊर्जा से विद्युत उत्पादन किया गया।
  • 20वीं शताब्दी में अमेरिका, न्यूजीलैंड, जापान और आइसलैंड जैसे देशों ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की।

भूतापीय ऊर्जा के स्रोत और तंत्र

पृथ्वी की सतह से नीचे जाने पर तापमान औसतन प्रति किलोमीटर 25–30 डिग्री सेल्सियस बढ़ता है। इस आधार पर अनेक स्थानों पर प्राकृतिक भूतापीय संसाधन उपलब्ध हैं।

प्रमुख स्रोत

  1. गर्म जलाशय (Hot Water Reservoirs): भूमिगत चट्टानों में संचित गर्म पानी।
  2. गर्म झरने (Hot Springs): सतह पर निकलने वाला गर्म पानी।
  3. गायजर (Geysers): अंतरालों पर उबलता पानी और भाप बाहर निकलती है।
  4. फ्यूमारोल (Fumaroles): पृथ्वी की सतह पर दरारों से निकलती भाप और गैसें।
  5. लावा क्षेत्र: सक्रिय ज्वालामुखियों के आस–पास अत्यधिक तापीय ऊर्जा।

भूतापीय ऊर्जा प्राप्त करने की तकनीक

भूतापीय ऊर्जा का उपयोग मुख्यतः दो रूपों में होता है—

  1. प्रत्यक्ष उपयोग (Direct Use):

    • स्नान, औषधीय उपचार, ग्रीनहाउस हीटिंग, मत्स्य पालन, भवनों को गर्म रखना, कपड़ा और चमड़ा उद्योग आदि।
  2. विद्युत उत्पादन (Electricity Generation):
    इसके लिए विशेष पावर प्लांट बनाए जाते हैं:

    • ड्राई स्टीम प्लांट (Dry Steam Plant): सीधे भाप से टरबाइन चलती है।
    • फ्लैश स्टीम प्लांट (Flash Steam Plant): उच्च दाब पर गर्म पानी को कम दाब पर लाकर भाप बनाई जाती है।
    • बाइनरी साइकिल प्लांट (Binary Cycle Plant): गर्म पानी से किसी अन्य द्रव को गर्म करके टरबाइन चलाई जाती है।

विश्व में भूतापीय ऊर्जा की स्थिति

  • आइसलैंड : ऊर्जा का 90% हिस्सा भूतापीय स्रोतों से आता है।
  • अमेरिका : विश्व में सबसे बड़ा भूतापीय विद्युत उत्पादक।
  • इटली : लार्डेरेल्लो क्षेत्र ऐतिहासिक दृष्टि से प्रसिद्ध।
  • फिलीपींस, इंडोनेशिया, मेक्सिको, न्यूजीलैंड, जापान : बड़े पैमाने पर उत्पादन।

भारत में भूतापीय ऊर्जा

भारत में कई भूतापीय क्षेत्र पहचाने गए हैं। प्रमुख हैं—

  1. पुगल घाटी (लद्दाख)
  2. मनिकरण और कसोल (हिमाचल प्रदेश)
  3. तत्तापानी (छत्तीसगढ़)
  4. सूर्यकुंड (झारखंड)
  5. पुणे, नासिक (महाराष्ट्र)
  6. गुजरात का कच्छ क्षेत्र

संभावनाएँ:

  • भारत में लगभग 10,000 मेगावाट भूतापीय ऊर्जा उत्पादन की क्षमता मानी जाती है।
  • वर्तमान में अनुसंधान और छोटे–मोटे प्रयोग ही चल रहे हैं।

भूतापीय ऊर्जा के लाभ

  1. नवीकरणीय और अक्षय स्रोत।
  2. पर्यावरण–अनुकूल, न्यूनतम कार्बन उत्सर्जन।
  3. सतत ऊर्जा आपूर्ति, मौसम पर निर्भर नहीं।
  4. ऊर्जा उत्पादन की लागत दीर्घकाल में कम।
  5. ग्रामीण एवं दूरस्थ क्षेत्रों में उपयोगी।
  6. रोजगार सृजन और क्षेत्रीय विकास।

भूतापीय ऊर्जा की चुनौतियाँ

  1. प्रारंभिक निवेश अत्यधिक महँगा।
  2. संसाधन की खोज और ड्रिलिंग कठिन।
  3. सीमित भौगोलिक उपलब्धता।
  4. भूमिगत गैसों (जैसे हाइड्रोजन सल्फाइड) के रिसाव की संभावना।
  5. प्रौद्योगिकीगत चुनौतियाँ।
  6. नीति और वित्तीय सहयोग की कमी।

भविष्य की संभावनाएँ

  • ऊर्जा संक्रमण (Energy Transition) की वैश्विक रणनीति में भूतापीय ऊर्जा की भूमिका बढ़ेगी।
  • उन्नत ड्रिलिंग तकनीक और कृत्रिम भूतापीय जलाशय (Enhanced Geothermal Systems) से उत्पादन बढ़ेगा।
  • भारत में हिमालयी और दक्कन क्षेत्र में विशाल संभावनाएँ हैं।
  • ग्रीन एनर्जी मिशन और जलवायु परिवर्तन नीतियों के तहत इसका महत्व और बढ़ेगा।

निष्कर्ष

भूतापीय ऊर्जा मानव समाज को एक ऐसा विकल्प देती है जो स्वच्छ, सतत और सुरक्षित है। हालांकि इसमें चुनौतियाँ हैं, परंतु वैज्ञानिक प्रगति और उचित नीतिगत समर्थन से यह भविष्य की ऊर्जा सुरक्षा का आधार बन सकती है। भारत जैसे विकासशील देश को चाहिए कि वह इस क्षेत्र में अनुसंधान, निवेश और प्रयोगों को बढ़ावा दे। आने वाले दशकों में जब जीवाश्म ईंधनों का युग समाप्त होगा, तब भूतापीय ऊर्जा निश्चित रूप से विश्व की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में अहम भूमिका निभाएगी।

टिप्पणियाँ

ABHINAV ने कहा…
बहुत ही अच्छी जानकारी आपने दी है, धन्यवाद