महिलाओं की भागीदारी में भारत का विकास लेख ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, ग्रामीण एवं शहरी विकास, चुनौतियाँ और समाधान सहित संपूर्ण विवेचना प्रस्तुत कर रहा हूं।
महिलाओं की भागीदारी में भारत का विकास
प्रस्तावना
भारत एक प्राचीन सभ्यता वाला राष्ट्र है, जिसकी पहचान विविधता, संस्कृति और लोकतांत्रिक मूल्यों से होती है। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज़ादी के 75 वर्षों के सफर तक भारत के विकास में महिलाओं ने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से अहम भूमिका निभाई है। समाज, अर्थव्यवस्था, राजनीति, शिक्षा, विज्ञान, कला, खेल और प्रशासन—हर क्षेत्र में महिला भागीदारी निरंतर बढ़ रही है। यह कहना गलत नहीं होगा कि “भारत का वास्तविक और समग्र विकास तभी संभव है, जब उसमें महिलाओं की सक्रिय और समान भागीदारी सुनिश्चित हो।”
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
भारतीय इतिहास के विभिन्न कालखंडों में महिलाओं की स्थिति और योगदान में बदलाव देखा गया है।
- वैदिक युग: महिलाएँ शिक्षा, दर्शन, राजनीति और युद्ध कौशल में अग्रणी थीं। गार्गी, मैत्रेयी जैसी विदुषियों ने भारतीय समाज को ज्ञान दिया।
- मध्यकालीन भारत: इस काल में पितृसत्तात्मक व्यवस्था ने महिलाओं की स्थिति को कमजोर किया। पर्दा प्रथा, बाल विवाह, सती प्रथा जैसी कुप्रथाओं ने उनकी भागीदारी सीमित कर दी।
- स्वतंत्रता संग्राम: रानी लक्ष्मीबाई, सरोजिनी नायडू, कस्तूरबा गांधी, अरुणा आसफ अली जैसी वीरांगनाओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- स्वतंत्र भारत: संविधान ने महिलाओं को समान अधिकार, मतदान का अधिकार और गरिमापूर्ण जीवन का अवसर दिया।
भारतीय संविधान और महिला अधिकार
भारत का संविधान महिलाओं की समानता और सशक्तिकरण का सबसे मजबूत आधार है।
- अनुच्छेद 14: समानता का अधिकार
- अनुच्छेद 15: लिंग आधारित भेदभाव का निषेध
- अनुच्छेद 39 (क): समान कार्य के लिए समान वेतन
- अनुच्छेद 51 (क): स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ावा देना
इन प्रावधानों ने महिलाओं को विकास प्रक्रिया में भागीदार बनने का संवैधानिक आधार दिया।
सामाजिक विकास में महिलाओं की भूमिका
- परिवार और समाज निर्माण: महिला केवल गृहिणी नहीं बल्कि समाज का प्रथम शिक्षक भी है। बच्चों के संस्कार, शिक्षा और नैतिकता का आधार वही रखती है।
- स्वास्थ्य और पोषण: मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रमों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी से समाज अधिक स्वस्थ बनता है।
- सामाजिक सुधार आंदोलनों में योगदान: सावित्रीबाई फुले, पंडिता रमाबाई, अन्ना भाऊ साठे जैसे सुधारकों के साथ महिलाओं ने शिक्षा और समानता के लिए संघर्ष किया।
आर्थिक विकास और महिला भागीदारी
भारत की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका निरंतर बढ़ रही है।
- कृषि क्षेत्र: भारत की लगभग 60% महिलाएँ कृषि कार्यों से जुड़ी हैं। उन्हें ‘अदृश्य कृषक’ कहा जाता है।
- उद्योग और सेवा क्षेत्र: वस्त्र उद्योग, आईटी सेक्टर, बैंकिंग, स्वास्थ्य सेवाएँ आदि में महिलाओं की बड़ी भागीदारी है।
- स्टार्टअप और उद्यमिता: फाल्गुनी नायर (Nykaa), वंदना लूथरा (VLCC), किरण मजूमदार शॉ (Biocon) जैसी महिला उद्यमियों ने भारत की आर्थिक प्रगति को नई दिशा दी।
- स्वयं सहायता समूह (SHGs): ग्रामीण भारत में महिलाओं के SHG मॉडल ने लाखों परिवारों की आजीविका सुधारी।
शिक्षा और महिला सशक्तिकरण
शिक्षा किसी भी समाज की प्रगति का मूल है।
- साक्षरता दर: 1951 में महिला साक्षरता दर मात्र 8.6% थी, जो 2011 में बढ़कर 65% और 2024 में लगभग 70% से अधिक हो गई।
- उच्च शिक्षा और अनुसंधान: मेडिकल, इंजीनियरिंग, प्रबंधन, प्रशासन और शोध क्षेत्रों में महिलाओं की उपस्थिति तेजी से बढ़ रही है।
- सरकारी योजनाएँ: ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’, ‘समग्र शिक्षा अभियान’, ‘सुकन्या समृद्धि योजना’ ने लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित किया।
राजनीति में महिला भागीदारी
लोकतांत्रिक व्यवस्था में महिलाओं का प्रतिनिधित्व समान होना आवश्यक है।
- स्वतंत्र भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री: इंदिरा गांधी
- राष्ट्रपति: प्रतिभा पाटिल, द्रौपदी मुर्मु
- लोकसभा और राज्यसभा: आज भी महिला प्रतिनिधित्व लगभग 14-15% ही है।
- स्थानीय निकायों में आरक्षण: पंचायत राज व्यवस्था में 33% महिला आरक्षण ने लाखों महिलाओं को नेतृत्व का अवसर दिया।
विज्ञान, खेल और संस्कृति में योगदान
- विज्ञान एवं तकनीक: कल्पना चावला, टेसी थॉमस, गगनयान मिशन की महिला वैज्ञानिक।
- खेल: पी.वी. सिंधु, मैरी कॉम, मिताली राज, साक्षी मलिक।
- कला और संस्कृति: लता मंगेशकर, अमृता शेरगिल, दीपा मेहता जैसी हस्तियाँ।
चुनौतियाँ
- लैंगिक भेदभाव
- महिला हिंसा और उत्पीड़न
- कार्यस्थल पर असमान वेतन
- शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी
- ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित अवसर
समाधान और सुझाव
- शिक्षा और कौशल विकास को प्राथमिकता देना
- महिला सुरक्षा और न्याय प्रणाली को मजबूत बनाना
- कार्यस्थलों पर समान अवसर और वेतन सुनिश्चित करना
- राजनीति और प्रशासन में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण लागू करना
- महिला उद्यमिता और स्टार्टअप को प्रोत्साहन
निष्कर्ष
भारत का विकास आधा अधूरा है यदि उसमें महिलाओं की पूर्ण भागीदारी नहीं है। महिला केवल समाज की ‘आधी आबादी’ नहीं बल्कि वह ‘आधा आसमान’ है। जब महिलाएँ शिक्षा, रोजगार, राजनीति, विज्ञान, खेल, कला और नेतृत्व के हर क्षेत्र में समान अवसर और सम्मान पाएंगी, तभी भारत एक सशक्त, समतामूलक और विश्वगुरु राष्ट्र बन सकेगा।
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