आत्मनिर्भर भारत, भारत सरकार की एक महत्वकांक्षी योजना है जिसके तहत भारत आर्थिक सामाजिक और तकनीकी रूप से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम हो।
आत्मनिर्भर भारत : स्वप्न और यथार्थ" इसमें प्रस्तावना, पृष्ठभूमि, आत्मनिर्भर भारत अभियान की अवधारणा, लक्ष्य, उपलब्धियाँ, चुनौतियाँ, आलोचनाएँ, तथा भविष्य की संभावनाएँ सब शामिल रहेंगे।
आत्मनिर्भर भारत : स्वप्न और यथार्थ
प्रस्तावना
"आत्मनिर्भर भारत" केवल एक नारा नहीं, बल्कि 21वीं सदी के भारत की सबसे बड़ी आवश्यकता और आकांक्षा है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी के बीच ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ की घोषणा की, तब यह स्पष्ट हो गया कि भारत अब केवल आयात-आधारित अर्थव्यवस्था पर आश्रित नहीं रह सकता। एक ओर महामारी ने विश्व की सप्लाई चेन को तहस-नहस कर दिया, दूसरी ओर भारत के करोड़ों नागरिकों ने यह अनुभव किया कि अगर देश स्वयं अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाएगा तो वैश्विक संकट की स्थिति में उसकी स्थिति कमजोर हो जाएगी।
‘आत्मनिर्भर भारत’ का विचार कोई नया नहीं है। भारत की सभ्यता हजारों वर्षों से स्वावलंबन की विचारधारा पर आधारित रही है। गाँव की अर्थव्यवस्था, कृषि पर आधारित जीवन, कुटीर उद्योग, हथकरघा, और लोक-कला—ये सब आत्मनिर्भर भारत के प्राचीन स्वरूप के प्रतीक थे। लेकिन औपनिवेशिक शोषण और वैश्वीकरण की अंधी दौड़ ने इस परंपरा को पीछे धकेल दिया। आज जब भारत विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, तब आत्मनिर्भर भारत की आवश्यकता और भी प्रासंगिक हो जाती है।
इस निबंध में हम आत्मनिर्भर भारत के स्वप्न और यथार्थ का गहन विश्लेषण करेंगे।
आत्मनिर्भर भारत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
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वैदिक और प्राचीन भारत में स्वावलंबन –
उस समय गाँव आत्मनिर्भर इकाइयाँ थे। कृषि, पशुपालन, हस्तशिल्प, शिक्षा, चिकित्सा—सब स्थानीय स्तर पर उपलब्ध था। -
मौर्य और गुप्त काल –
भारत की आर्थिक समृद्धि, ‘सोने की चिड़िया’ की उपाधि, आत्मनिर्भरता की मिसाल थी। -
मध्यकाल –
यहाँ भी भारत अपनी कला और शिल्प से विश्व का नेतृत्व करता रहा। बनारस की साड़ी, मुगलकालीन कारीगरी, और मसालों का व्यापार भारतीय स्वावलंबन के प्रतीक थे। -
औपनिवेशिक काल –
ब्रिटिश शोषण ने भारतीय उद्योग-धंधों को तबाह कर दिया। कपड़ा उद्योग को खत्म कर भारत को कच्चा माल आपूर्ति करने वाला देश बना दिया गया। यही वह मोड़ था जब आत्मनिर्भरता की जगह परनिर्भरता ने ले ली। -
स्वतंत्रता संग्राम और स्वदेशी आंदोलन –
महात्मा गांधी ने ‘स्वदेशी’ और ‘खादी’ को आत्मनिर्भरता के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया। उनका मानना था कि भारत तभी मजबूत होगा जब गाँव-गाँव आत्मनिर्भर बनेंगे।
आत्मनिर्भर भारत अभियान की शुरुआत
- मई 2020 में प्रधानमंत्री मोदी ने ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ का ऐलान किया।
- इसके तहत 20 लाख करोड़ रुपये के विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की गई।
- अभियान का मूल मंत्र था—“लोकल के लिए वोकल बनो”।
- इसका उद्देश्य था—देश को उत्पादन, तकनीक, कौशल और संसाधनों में आत्मनिर्भर बनाना।
आत्मनिर्भर भारत के पाँच स्तंभ
प्रधानमंत्री मोदी ने पाँच प्रमुख स्तंभ बताए:
- अर्थव्यवस्था – मात्र सुधार नहीं, बल्कि क्वांटम जंप।
- इन्फ्रास्ट्रक्चर – आधुनिक भारत की नींव।
- टेक्नोलॉजी-प्रेरित सिस्टम – डिजिटल और स्मार्ट समाधान।
- डेमोग्राफी – भारत की युवा शक्ति।
- डिमांड – भारत का बड़ा उपभोक्ता बाज़ार।
आत्मनिर्भर भारत : स्वप्न
आत्मनिर्भर भारत का सपना केवल आत्म-केन्द्रितता नहीं, बल्कि वैश्विक योगदान से जुड़ा है। यह विचार बताता है कि भारत अपने संसाधनों का उपयोग कर, अपनी क्षमता विकसित कर, विश्व को भी सहयोग देगा।
स्वप्न के प्रमुख बिंदु
- आर्थिक स्वतंत्रता – आयात पर निर्भरता घटे।
- रोज़गार सृजन – हर हाथ को काम मिले।
- कृषि और ग्रामीण विकास – किसान सशक्त हों, गाँव समृद्ध हों।
- टेक्नोलॉजी और नवाचार – भारत अनुसंधान का केंद्र बने।
- स्वास्थ्य और शिक्षा – आत्मनिर्भर भारत की असली रीढ़।
- रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता – हथियार और तकनीक में आत्मनिर्भर बनना।
- ऊर्जा आत्मनिर्भरता – अक्षय ऊर्जा पर बल।
- वैश्विक नेतृत्व – आत्मनिर्भर भारत विश्व कल्याण के लिए योगदान दे।
आत्मनिर्भर भारत : यथार्थ
उपलब्धियाँ
- कोविड-19 वैक्सीन निर्माण –
भारत ने कोविशील्ड और कोवैक्सिन जैसी वैक्सीन बनाकर विश्व को आपूर्ति की। - मोबाइल निर्माण में उछाल –
भारत अब दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता है। - डिजिटल इंडिया की सफलता –
UPI, आधार, और डिजिटल भुगतान आत्मनिर्भरता के उदाहरण हैं। - रक्षा उत्पादन –
तेजस लड़ाकू विमान, अग्नि और पृथ्वी मिसाइल, और INS विक्रांत जैसे युद्धपोत। - स्टार्टअप इंडिया –
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम बन चुका है।
चुनौतियाँ
- आयात पर निर्भरता अब भी भारी – विशेषकर तेल, गैस और इलेक्ट्रॉनिक्स चिप्स में।
- कृषि क्षेत्र की समस्याएँ – किसान आत्मनिर्भर बनने के बजाय कर्ज और बाज़ार की मार झेलते हैं।
- शिक्षा और कौशल का अभाव – वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए कौशल का स्तर अभी कम है।
- नौकरी संकट – बढ़ती जनसंख्या के लिए पर्याप्त रोजगार उपलब्ध नहीं।
- निर्यात प्रतिस्पर्धा – चीन और अन्य देशों से मुकाबला कठिन।
आत्मनिर्भर भारत की आलोचनाएँ
- कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह ‘आत्मनिर्भरता’ नहीं बल्कि ‘संरक्षणवाद’ की ओर वापसी है।
- कई योजनाएँ कागज़ों पर सीमित हैं।
- MSME को पर्याप्त राहत नहीं मिली।
- वैक्सीन निर्यात पर भी राजनीतिक विवाद हुए।
आत्मनिर्भर भारत और वैश्विक परिप्रेक्ष्य
- आज हर देश आत्मनिर्भरता पर बल दे रहा है।
- अमेरिका में "मेड इन अमेरिका", चीन में "मेड इन चाइना 2025" जैसी योजनाएँ हैं।
- भारत का आत्मनिर्भरता मॉडल भी वैश्विक सहयोग और स्थानीय सशक्तिकरण का मिश्रण है।
भविष्य की राह
- अनुसंधान और नवाचार में निवेश बढ़ाना होगा।
- कृषि को आधुनिक और लाभकारी बनाना होगा।
- रोज़गार-उन्मुख शिक्षा प्रणाली विकसित करनी होगी।
- स्वदेशी उद्योगों को प्रोत्साहन और विदेशी निर्भरता को घटाना होगा।
- हर गाँव और हर नागरिक को आत्मनिर्भर बनाने की योजना तैयार करनी होगी।
उपसंहार
‘आत्मनिर्भर भारत’ का स्वप्न केवल राजनीतिक घोषणा नहीं, बल्कि यह भारत के उज्ज्वल भविष्य की दिशा है। भारत यदि अपने संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करे, युवाओं को अवसर दे, और शिक्षा-स्वास्थ्य पर बल डाले, तो आत्मनिर्भरता केवल सपना नहीं रहेगी, बल्कि यथार्थ का रूप ले लेगी।
भारत की आत्मनिर्भरता केवल भारत को ही नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता को लाभ पहुँचाएगी। गांधीजी ने कहा था—
"भारत की आत्मा गाँवों में बसती है।"
जब गाँव-गाँव आत्मनिर्भर होंगे, तभी सचमुच भारत आत्मनिर्भर बनेगा।
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