मनुष्य ने बड़े पैमाने पर बहुत तेजी से पेड़ों को काट रहा है, पेड़ काटने से मानव जीवन पर कई प्रकार के परिणाम देखने को मिल रहा है।
वनों की कटाई के फायदे और नुकसान क्या क्या है?
जब वनों की कटाई के मुद्दे की बात आती है, तो अक्सर इसे कुछ नकारात्मक माना जाता है। हालाँकि, इस अभ्यास को करने के कई कारण भी हैं।
“पेड़ काटने के दुष्परिणाम” विषय पर अलग-अलग उपशीर्षक (Subheadings) होंगे ताकि पढ़ने और समझने में आसानी रहे।
पेड़ काटने का दुष्परिणाम
प्रस्तावना
मनुष्य और प्रकृति का रिश्ता सदियों पुराना है। इंसान ने अपनी सभ्यता, संस्कृति और प्रगति की नींव प्रकृति की गोद में ही रखी। पेड़-पौधे केवल हरे-भरे जंगल का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि ये हमारे जीवन के आधार स्तंभ हैं। जिस प्रकार मनुष्य के लिए श्वास लेना अनिवार्य है, उसी प्रकार पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए पेड़ आवश्यक हैं। आज जब दुनिया आधुनिकता की दौड़ में तेजी से भाग रही है, तब जंगलों की अंधाधुंध कटाई (Deforestation) हमारे अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न खड़ा कर रही है। पेड़ काटने का दुष्परिणाम केवल पर्यावरणीय समस्या नहीं है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक संकट भी है।
1. पर्यावरणीय दुष्परिणाम
(क) वायुमंडलीय संतुलन का बिगड़ना
पेड़-पौधे कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर ऑक्सीजन छोड़ते हैं। जब पेड़ काट दिए जाते हैं तो वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है। इसका सीधा असर ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन पर पड़ता है।
(ख) मिट्टी का कटाव
जंगलों में पेड़ अपनी जड़ों से मिट्टी को बाँधकर रखते हैं। पेड़ कट जाने पर मिट्टी खुली हो जाती है और वर्षा के दौरान बहकर नदी-नालों में चली जाती है। इसका परिणाम है – बाढ़, उपजाऊ भूमि का बंजर होना और रेगिस्तानीकरण।
(ग) वर्षा चक्र में असंतुलन
पेड़ वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) के माध्यम से वातावरण में नमी बनाए रखते हैं। यही नमी बादलों के निर्माण और वर्षा का कारण बनती है। पेड़ों की कमी से वर्षा कम होती है, सूखा और अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
(घ) प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि
जंगल प्राकृतिक ढाल की तरह काम करते हैं। जब ये कट जाते हैं तो बाढ़, भू-स्खलन, तूफान और चक्रवात जैसी आपदाएँ अधिक तीव्र हो जाती हैं।
2. जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव
(क) ग्लोबल वार्मिंग
पेड़ों की कमी के कारण ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में अधिक समय तक रहती हैं। इससे पृथ्वी का औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है।
(ख) हिमनदों का पिघलना
पेड़ कटने से जलवायु असंतुलित होती है, जिसका असर हिमालय और आर्कटिक क्षेत्रों की बर्फ पर पड़ रहा है। ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है।
(ग) चरम मौसमी परिस्थितियाँ
कहीं अधिक गर्मी, कहीं भीषण सर्दी, कहीं तेज तूफान और कहीं सूखा – ये सब पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और जलवायु परिवर्तन का नतीजा हैं।
3. जैव विविधता पर दुष्प्रभाव
(क) वन्य जीवों का आवास नष्ट होना
जंगल केवल पेड़ नहीं होते, बल्कि असंख्य जीव-जंतुओं का घर होते हैं। जब पेड़ काटे जाते हैं तो जानवरों का प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाता है। इससे कई प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर पहुँच जाती हैं।
(ख) खाद्य श्रृंखला का टूटना
हर जीव एक-दूसरे पर निर्भर है। यदि जंगल समाप्त होते हैं तो पक्षियों, कीड़ों और शाकाहारी पशुओं के लिए भोजन का संकट खड़ा होता है, जिससे पूरी खाद्य श्रृंखला बिगड़ जाती है।
(ग) औषधीय पौधों का नाश
जंगलों में असंख्य औषधीय पौधे पाए जाते हैं जो आयुर्वेद, यूनानी और आधुनिक चिकित्सा पद्धति के लिए वरदान हैं। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से ये दुर्लभ पौधे नष्ट हो जाते हैं।
4. आर्थिक दुष्परिणाम
(क) कृषि पर प्रभाव
मिट्टी का कटाव और वर्षा चक्र का असंतुलन सीधे कृषि को प्रभावित करता है। इससे फसल उत्पादन घटता है और किसानों की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है।
(ख) प्राकृतिक संसाधनों की कमी
पेड़-पौधे लकड़ी, रेज़िन, गोंद, फल-फूल और औषधियों के स्रोत हैं। इनकी कमी से ग्रामीण और आदिवासी अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होती है।
(ग) पर्यटन उद्योग पर असर
घने जंगल, वन्य जीव और प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटन का आधार हैं। जंगलों की कटाई से पर्यटन उद्योग पर नकारात्मक असर पड़ता है और स्थानीय लोगों की आय कम हो जाती है।
5. सामाजिक एवं सांस्कृतिक दुष्परिणाम
(क) आदिवासी समाज पर असर
जंगल आदिवासी समुदाय की संस्कृति, आजीविका और पहचान का हिस्सा हैं। पेड़ कटने से उनका जीवन संकट में पड़ जाता है और उन्हें पलायन करना पड़ता है।
(ख) सांस्कृतिक विरासत का नाश
भारत की अनेक धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएँ वृक्षों से जुड़ी हैं। पीपल, बरगद, नीम जैसे पेड़ों को पवित्र माना गया है। इनके नष्ट होने से सांस्कृतिक धरोहर पर भी संकट आता है।
6. स्वास्थ्य संबंधी दुष्परिणाम
(क) शुद्ध वायु की कमी
पेड़ हमें शुद्ध ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। इनके अभाव में वायु प्रदूषण बढ़ता है और श्वास संबंधी रोग जैसे दमा, एलर्जी, ब्रोंकाइटिस आदि बढ़ जाते हैं।
(ख) महामारी का खतरा
जंगल नष्ट होने से वन्य जीव मानव बस्तियों की ओर आने लगते हैं। इससे नई बीमारियाँ और वायरस मनुष्यों तक पहुँचते हैं, जैसे कोरोना वायरस को भी वैज्ञानिक रूप से प्राकृतिक असंतुलन से जुड़ा माना जाता है।
(ग) मानसिक स्वास्थ्य पर असर
हरे-भरे पेड़-पौधे मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करते हैं। पेड़ कटने से शहरी जीवन तनावपूर्ण और अस्वस्थ हो जाता है।
7. भविष्य की पीढ़ियों पर असर
यदि पेड़ इसी तरह कटते रहे तो आने वाली पीढ़ियों के सामने ऑक्सीजन, स्वच्छ पानी और उपजाऊ जमीन का संकट खड़ा हो जाएगा। उन्हें केवल तकनीकी प्रगति ही नहीं बल्कि जीवित रहने की लड़ाई भी लड़नी पड़ेगी।
8. समाधान और विकल्प
(क) वनीकरण और पुनर्वनीकरण
जहाँ भी पेड़ काटे जाएँ, वहाँ नए पेड़ लगाने की व्यवस्था होनी चाहिए। हर नागरिक को साल में कम से कम एक पेड़ लगाने का संकल्प लेना चाहिए।
(ख) कठोर कानून
सरकार को पेड़ काटने पर कठोर कानून बनाने और सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है।
(ग) जनजागरूकता
लोगों को यह समझाना जरूरी है कि पेड़ केवल हरियाली नहीं बल्कि जीवन का आधार हैं।
(घ) सतत विकास
ऐसा विकास मॉडल अपनाना होगा जिसमें उद्योग, कृषि और शहरीकरण के साथ-साथ पर्यावरण संतुलन भी बना रहे।
निष्कर्ष
पेड़ काटने का दुष्परिणाम इतना व्यापक है कि यह केवल एक पर्यावरणीय समस्या नहीं बल्कि मानव अस्तित्व का प्रश्न है। जब जंगल नष्ट होते हैं तो केवल हरियाली नहीं, बल्कि जीवन की संपूर्ण ऊर्जा, संस्कृति और भविष्य नष्ट हो जाता है। इसलिए आज हमें यह समझना होगा कि “यदि पेड़ बचेंगे तभी जीवन बचेगा”।
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